मंगलवार, 26 जनवरी 2016

भविष्य पर टंगी है निगाहें

हमें भविष्य को पढ़ने की जिद रहती है. अभी अभी नया साल 2016 आया है और हम साल के पूरे 12 महीनों का भविष्य एक सांस में पढ़ लेना चाहते हैं, जो शायद संभव भी नहीं है. क्योंकि भविष्य हमेशा गर्भ में रहता है और वह समय आने पर ही बाहर निकलता है. खैर नए साल से हमें काफी उम्मीदें है और सामने कई चुनौतियां भी. दुनिया में कई ऐसे इनोवेशन इन दिनों हुए हैं जिससे संभव है नए साल में हम एक बेहतर जिंदगी जी सकें. टेक्नोलॉजी हमारे जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए हर पल कुछ न कुछ नया इजाद करती रहती है और अब वो समय भी नहीं रहा जब हम बिना टेक्नोलॉजी के एक कदम भी आगे बढ़ा सके. तकनीकी क्रांति के बड़े से बड़े आलोचक भी अब यह मानने लगे हैं कि कैसेट को फास्ट फारवर्ड तो किया जा सकता है लेकिन रिवाइंड नहीं. यही हकीकत भी है. दुनिया बड़ी तेजी से बदल रही है और हम पर पल कुछ नया चाहते हैं और इसी नए पाने की चाहत में टेक्नोलॉजी भी मानवता की चाहत के साथ कदमताल करती रहती है.



मेडिकल साइंस ने एक गजब की खोज की है. अब कुत्ते आपको सूंघकर यह बता देंगें कि आप बीमार हैं. यही नहीं कुत्ते यह भी बता देंगें कि आपको कौन सी बीमारी है. यहां तक की कैंसर भी. नाक की बात जब होती है तो कुत्ते की नाक के फायदे सबसे ज्यादा है. और मेडिकल साइंस ने इसी का फायदा उठाया. ब्रिटेन में कुत्तों को डॉक्टर की टीम ने आठ लोगों के यूरीन सैंपल दिए जिसमें एक यूरीन सैंपल एक ऐसे मरीज की थी जिसे कैंसर थी नहीं लेकिन उसके लक्षण थे. कुत्ते को पहचानने का टास्क दिया गया और कुत्ते ने कैंसर के लक्षण वाले मरीज के यूरीन सैंपल की पहचान कर ली. ऐसे कुत्तों को मेडिकल डिटेक्शन टीम में शामिल किया गया है. भारत में हमें देखना है कि बीमारियों की कुछ डायग्नोसिस सुनिश्चित की जाए, खास कर गरीब और मध्यम तबके के लिए जो अपने शहरों में इलाज करा कर थक जाते हैं . फिर बड़े अस्पतालों में महंगे टेस्ट पर टेस्ट कराते हैं. अनेकों एसी बीमारियां है जो आले से पहचानी जा सकती है उसके लिए भी 5 से दस हजार तक के टेस्ट करा दिए जाते हैं. भारत बड़ी आबादी वाला देश है और 70 फीसदी लोग गांवों में बसती है. 70 फासदी की आम आबादी के लिए क्या 2016 में चिकित्सा सुविधा सस्ती होगी. महंगे ऑपरेशन सस्ते होंगे. इन चुनौतियों को कम करने के लिए काफी उपाय किए जा रहे हैं. संभव है इस साल गांवों में बेहतर अस्पताल खुलें और स्वास्थ्य सुविधाएं सस्ती हों. तकनीक का इस्तेमाल कर हम महंगे ऑपरेशन को सस्ते कर सकते हैं जैसे अभी रोबोट के इस्तेमाल से हार्ट ब्लॉकेज जैसे ऑपरेशन बिना रक्त हानि के संभव हो पाए हैं. मगर एक बड़ी चुनौती है डॉक्टर और अस्पताल की. एक आंकड़े के मुताबिक 80 फीसदी डॉक्टर, 75 फीसदी क्लिनिक और 60 फीसदी अस्पताल शहरी इलाकों में हैं. 
 यह कहना यूटोपिया है कि दुनिया में शांति और भाइचारे का राज है लेकिन सच है कि पूरी दुनिया में युद्ध की स्थिति बनी हुई है. सबसे भयावह होती है युद्ध की विभीषिका. युद्ध में घायल हुए लोगों के घाव जल्दी नहीं भरते. लेकिन मेडिकल साइंस ने इस पर भी फतह कायम की है. घाव के दाग और उस पीड़ा को खत्म करने के लिए मेडिकल साइंस 2016 में और कुछ नया करेगी लेकिन फिलहाल यहां आपको जानकारी दे दूं कि अमेरिका में पिछले दिनों युद्ध में घायल हुए एक सैनिक का लिंग प्रत्यारोपित किया गया. अमेरिका में लिंग प्रत्यारोपण का यह पहला केस था. जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसीन में यह सफल प्रत्यारोपण किया गया. 12 घंटे तक यह सर्जरी चली और 50 लाख डॉलर खर्च हुए. मृत डोनर का शिश्न लिया गया और उसे प्रत्यारोपित किया गया. 
 एक ड्रोन आ रहा है- फ्लेयी जो फ्रेंडली होगा. यह फोर-रोटर ड्रोन है और इसकी साइज एक औसत फुटबॉल जैसी ही होगी. वजन लगभग 450 ग्राम होगा. यह लिनक्स बेस्ड कंप्यूटर होगा और इसमें डूयेल कोर प्रोसेसर होगा. यह जीपीएस इनेबल्ड है और इसमें 512 एमबी रैम है. 5 मेगा पिक्सल कैमरा. प्रति सकेंड 30 फ्रेम ले सकेगा. फुल एचडी वीडियो. सितंबर में इसे लांच किया जा सकता है. इसकी कीमत 1,250 पाउंड है. अगर आप पैपाराजी करना चाह रहे हैं तो ओनोगोफ्लाई ड्रोन 2016 में आपके काम आ सकता है. हथेली पर आने वाला यह ड्रोन में वह सारी खूबियां है जो 360 डिग्री पर हर कुछ रिकार्ड करने की क्षमता रखता है. स्मार्ट एग एक यूनिवर्सल रिमोट कंट्रोल है जो 2016 में आपको काफी ललचाएगा. बस इसे अपने घर के किसी सेंट्रल प्लेस में रख दें और इसे अपने एंड्रायड या आइओएस मोबाइल में ब्लूटूथ से पेयर कर दें. यह ब्लूटूथ के जरिए 5000 से ज्यादा रिमोट कंट्रोल और 1,20,00 इंफ्रारेड को पहचान लेगा. इसके ऐप के जरिये आप घर के एसी, टीवी और एंप्लीफायर को रिमोट कंट्रोल कर सकते हैं अपने मोबाइल से. यो कैम यह सिर्फ एक प्रोफेशनल कैमरा भर नहीं है बल्कि यह आपके लाइफ में रोमांच लाने का दावा करता है. वजन महज 55 ग्राम और इससे वाइड एंगल में सेल्फी ले सकते हैं. स्मार्टफोन में सबसे बड़ी परेशानी चार्जिंग खत्म होने की होती है. 
अभी यूरोप के रिफ्यूजी कैंप में सबसे बड़ी समस्या यही आ रही है. हर कोई यही सवाल करता है कैंप में कि मोबाईल कहां चार्च करें. यूएन कमीशन ने शरणार्थियों की इस समस्या से जब टेक कंपनी को अवगत कराया तो टेलीकॉम कंपनी वोडाफोन ने इन कैंपों में इंस्टैंट नेटवर्क और चार्जिंग स्टेशन बना दिया. सोलर पैनल के जरिए सभी के मोबाइल में 6 घंटे की बैट्री बैकअप आ गई. इतना ही क्रोएशिया की एक कंपनी मेश प्वाइंट ने हर मौसम में काम करने वाली वाई-फाई रिफ्यूजी कैंपों में लगाई और 4G मोबाइल डिवाइस सेट अप किया. इससे एक साथ 150 लोग इंटरनेट से कनेक्टेड हो सकते हैं. अमेरिका के फेडरल विमानन प्रशासन एफएए ने छोटे ड्रोनों के लिए पांचवें टेस्ट साइट की घोषणा की है. न्यू यॉर्क के निकट रोम में ग्रिफिस एयरपोर्ट पर शोधकर्ता इन मानवरहित विमानों का कृषि क्षेत्र में हो सकने वाले इस्तेमाल का जायजा लेंगे. वे प्रेसिजनहॉक लैंकैस्टर प्लेटफॉर्म यूएवी को उड़ाएंगे जो रिमोट से कंट्रोल होने वाला विमान है. इसके पंख 1.2 मीटर लंबे हैं, इसका भार 3 पाउंड है और वह 2.2 पाउंड का पेलोड ले जाने में सक्षम है. 
ड्रोन तकनीक का तेजी से विकास हो रहा है और कई दूसरे देशों में उसका असैनिक इस्तेमाल भी शुरू हो गया है. लेकिन अमेरिका समेत कई देशों में अभी कोई कानून न होने के कारण उसका इस्तेमाल गैरकानूनी है. अगर भारत में कृषि संबंधी शोध ड्रोन के जरिये किया दाए तो देश भर के किसानों को ड्रोन तकनीक से काफी फायदा मिलेगा. हालांकि यब बात अलग है कि अब महंगी शादियों का रिकार्डिंग भी ड्रोन से की जा रही है. संघीय विमानन एजेंसी एफएए अमेरिका में छह जगहों पर ड्रोन टेस्ट करने की अनुमति दे रहा है जहां इस बात की जांच की जाएगी कि किस तरह नीचे उड़ान भरने वाले छोटे ड्रोन अमेरिका के व्यस्त हवाई क्षेत्र में सुरक्षित उड़ान भर सकते हैं. अब तक रोम के अलावा अलास्का, नेवादा, उत्तरी डकोटा और टेक्सास को इसकी अनुमति मिली है. अमेरिका में मानवरिहत विमानों की लोकप्रियता बढ़ रही है और उनका इस्तेमाल विभिन्न क्षेत्रों में किया जा सकता है. लेकिन इस समय ड्रोन के उड़ान संबंधी कोई नियम नहीं हैं और एफएए ड्रोन के इस्तेमाल के व्यापक नियम बनाने में लगा है. लेकिन जब तक नियम तैयार नहीं हो जाते, एफएए ने कहा है कि उसकी अनुमति के बिना व्यावसायिक फायदे के लिए ड्रोन उड़ाने पर रोक है. ड्रोन का इस्तेमाल कैसे हो सकता है, इसका एक नमूना तब मिला जब न्यू यॉर्क के जेफरसन काउंटी के शेरिफ ने स्वीकार किया कि स्थानीय ड्रोन स्टार्ट अप की मदद से उन्हें चोरी हुए हथियारों का पता लगा. होराइजन एरियल मीडिया सर्विसेज की मालिक एमेंडा डेसजार्डिन्स ने बताया, "उन्होंने कहा कि उनका एक अजीब सा आग्रह है. जमीन से 15 मीटर की ऊंचाई पर उड़ते हुए होराइजन के कैमरा लगे फैंटम 2 क्वाड्रोकॉप्टर ने आधे घंटे में लूट का पता बता दिया." 
फैंटम 2 इस समय बाजार में उपलब्ध सबसे लोकप्रिय ड्रोन है. कैमरे के साथ इसकी कीमत करीब 1200 डॉलर है. इलेक्ट्रिक कार अब लाइन से बाहर हो चुकी है. अब नया जमाना इलेक्ट्रिक मोटरबाइक का आने वाला है. साइलेंट बाइक का जमाना. रिक्शा तो आ ही गया है अब सड़क पर बैट्रीचालित बाइक भी दौड़ेगी. 2016 में नहीं तो आने वाले कुछ सालों में साइलेंट बाईक सड़कों पर दौड़ने लगेगी. जर्मन ऑटो कंपनी बीएमडब्ल्यू इस क्षेत्र में जल्द ही क्रांति लाने की उम्मीद कर रहा है. कंपनी हाई परफॉरमेंस साइलेंट बाइक eRR मार्केट में उतारेगा. भारत के स्पेस प्रोग्राम ने अपनी नेविगेशन प्रणाली को तैयार कर लिया है. जिसे उपग्रह की मदद से अंतरिक्ष में स्थापित भी कर लिया है. इस उपग्रह की मदद से भारत अमेरिका की तर्ज पर अपना जीपीएस सिस्टम तैयार करने की स्थिति में है. इसे साल के शुरूआती महीने में ही सातों उपग्रहों की कक्षा में स्थापित कर दिया जाएगा.


सोमवार, 25 जनवरी 2016

भारत को समझना है तो स्टार्टअप को लाना होगा फ्रेश आइडिया

बाजार के पंडित कहते हैं कि इस साल के अंत तक ई-कॉमर्स इंडस्ट्री 50 बिलियन डॉलर की हो जाएगी. देश में स्टार्टअप को प्रमोट करने के लिए सरकार 10 हजार करोड़ रूपये का नया फंड बना रही है. स्टार्टअप करने वाले को 3 साल तक कोई टैक्स नहीं देना होगा. लेकिन इसका एक अलग चेहरा भी नजर आ रहा है. कई ई-कॉमर्स कंपनिया छोटे और मंझोले शहर में अपना सर्विस बंद कर चुकी है.जोमाटो, ग्रूफर समेत कई कंपनियों ने टायर-2 सिटीज में किया शटर डाउन. जुनैद हसन लखनऊ में एक इंवेस्टमेंट बैंकर है. पिछले दिनों अपने गर्लफ्रेंड के साथ वह अपने कमरे में था और गर्लफ्रेंड को बर्थडे ट्रीट देने के लिए उसने जोमाटो को लंच आर्डर किया. लेकिन अफसोस जुनैद का आर्डर बुक नहीं हो पाया. जब उसने इसकी वजह जाननी चाही तो जानकारी मिली कि जोमाटो ने कोच्चि, कोयंबटूर, लखनऊ, इंदौर समेत कई टायर-2 सिटीज में अपनी सर्विस बंद कर दी है. मालूम हो कि जोमाटो भारत का सबसे बड़ा रेस्टोरेंट एग्रीगेटर है और इसके ऐप और वेबसाइट पर देश के 75,000 रेस्टोरेंट की लिस्टिंग है. यह देश के 14 शहरों में फूड डिलेवरी का आर्डर लेता है. छह महीने तक जिन टायर-2 सिटीज में लगातार सर्विस देते रहे, वहां जोमाटो को अपना सर्विस क्यों बंद करना पड़ा. वजह साफ है-बिक्री का दर काफी कम रहना. जोमाटो कंपनी के अधिकारी कहते हैं कि छोटे और मझोले शहर में कंपनी के टोटल सेल्स में 2 फीसदी से भी कम की हिस्सेदारी देखी जा रही थी, इसलिए कंपनी ने यहां सर्विस बंद करने का फैसला लिया. उचित समय आने पर दोबारा सर्विस चालू होगी. जोमाटो ही नहीं ग्रूफर, फूडपांडा और टिनी आउल ने भी छोटे और मझोले शहर में अपना शटर डाउन कर दिया है. अब जरा इस विरोधाभास को भी समझें.टायर-2 सिटीज में मजबूत हो रही फ्लिपकार्ट और स्नैपडील.कई ई-कॉमर्स प्लेटफार्म का 60 फीसदी बिजनेस नन मेट्रो सिटी से होता है. फ्लिपकार्ट और स्नैपडील एक दिन में 50 से ज्यादा शहरों में डिलेवरी करने का दावा करते हैं. इनका नन मेट्रो शहरों के कई लॉजिस्टिक कंपनियों से टाईअप है और 1000 से ज्यादा शहरों में डिलेवरी करते हैं. बिग बास्केट 19 शहरों में दे रही सर्विस. वाहनों की प्रचुरता के कारण बिग बास्केट मेट्रो सिटी में सफल साबित हो रही है.छोटे शहरों में सफलता की वजह यह है कि जो उत्पाद लोकल दुकानदार नहीं उपलब्ध करा पाते यह कंपनी कंपनी उपलब्ध कराती है. ट्रैवल फर्म ओला 102 शहरों में सेवा देती है. कंपनी का मानना है कि छोटे शहरों में सफलता की बड़ी वजह यह है कि यहां यातायात के संगठित उपाय नहीं है. फूड और घरेलू सामान की डिलेवरी में है कई चुनौतियां. जोमाटो, स्वीगी, फूडपांडा और टिनी आउल समेत कई स्टार्टअप को छोटे शहरों में हो रही परेशानी.ज्यादा संख्या में रेस्टोरेंट और भोजनालय के अभाव के कारण सप्लाई में लिमिटेशन करनी पड़ रही है और कठिनाई हो रही है.ज्यादातर ग्राहक होम डिलेवरी से बेहतर रेस्टोरेंट में जाकर खाना पसंद करते हैं और दुकान में जाकर घर का सामान खरीदना पसंद करते हैं.छोटे शहरों में ग्राहक समय के प्रति ज्यादा पाबंद नहीं होते हैं और उनके पास काफी समय होता है बाहर जाकर खाने –खरीदने के लिए.
टायर-2 सिटीज में और सभी ई-कॉमर्स प्लेयर्स से कुछ अलग होता है फूड और ग्रॉसरी डिलेवरी. ज्यादा से ज्यादा डिमांड को पूरा करने के लिए इन शहरों में रेस्टोरेंट और ग्रॉसरी फर्म का अभाव है. इसलिए परेशानी हो रही है- पंकज चढ्ढा, को फाउंडर जोमाटो

पाकिस्तान इंक को मजबूत करने गए थे लाहौर मोदी

पीएम मोदी का लाहौर टूर एक बिजनेस टूर था. जब मोदी लाहौर एयरपोर्ट पर अचानक उतरे तो भारत में अचानक पाकिस्तान प्रेम जाग उठा और सभी एक बार फिर से सद्भावना और सौहाद्र की बात करने लगे. फिर से डायलॉग डिप्लोमैसी की बात होने लगी. लेकिन दरअसल ऐसा कुछ था नहीं. सनद रहे कि वाजपेयी ने जो पाकिस्तान से बातचीत का रास्ता खोला था, मोदी उस रास्ते पर नहीं चल रहे हैं. यह तो दो कारोबारी पीएम का मिलन था. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लाहौर के मियां मुहम्मद नवाज शरीफ खानदानी कारोबारी हैं. पाकिस्तान की बड़ी औधोगिक ईकाई इत्तेफाक ग्रुप ऑफ कंपनीज इनका पुश्तैनी कारोबार है और यह इनके पिता मुहम्मद शरीफ के द्वारा स्थापित किया गया था. और यह अकारण नहीं था कि 2015 के अंत में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पाक पीएम नवाज शरीफ से मिलने अचानक लाहौर एयरपोर्ट पर उतर गए. दरअसल पीएम मोदी का यह विजिट नवाज शरीफ के कारोबार को और विस्तार देने के लिए पहले से नियोजित किया गया था. इस ऐतिहासिक मिलन का आयोजन कराया था भारत के स्टील मैग्नेट सज्जन जिंदल ने और पृष्ठभूमि तैयार की थी पूर्व पाकिस्तानी राजदूत सलमान बशीर ने. पाकिस्तानी वेबसाइट फाइवरुपीज.कॉम के मुताबिक प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ का परिवार स्टील के धंधे में है. उनके परिवार की कंपनी 'इत्तेफाक ग्रुप ऑफ कंपनीज़' स्टील के व्यापार में है. पाकिस्तान के हिस्से वाले पंजाब में इसका लंबा-चौड़ा स्टील कारोबार है.हाल ही में बशीर भारत की यात्रा पर थे. कहा जा रहा है कि अपनी भारत यात्रा के दौरान ही उन्होंने इस औचक मुलाकात का विचार दिया था. इस विचार को आगे बढ़ाने का काम भारत के एक उद्योगपति परिवार ने किया. इसके पीछे मुंबई के स्टील किंग सज्जन जिंदल का नाम सामने आ रहा है. सज्जन जिंदल पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के खास मित्रों में हैं. मोदी की इस यात्रा में गौरतलब बात यह भी है कि सज्जन जिंदल का नवाज शरीफ के बेटे के साथ व्यापारिक रिश्ता सीधे जुड़ा है. - भारतीय स्टील कंपनियों का एक ग्रुप है – अफगान आयरन एंड स्टील कंसोर्टियम(एफिस्को). यह ग्रुप पाक सरकार से लगातार आफगानिस्तान के बामियान प्रांत होकर कराची तक लौह अयस्क के ट्रांसपोर्टेशन के राइट देने के लिए लिए वार्ता कर रही थी. फिलहाल लौह अयस्क का ट्रांजिट रुट रूस के रास्ते होता है जो काफी महंगा है.इस स्टील कंसोर्टियम में सेल, जिंदल की जेएसडब्ल्यू, जेएसपीएल और मॉनेट इस्पात शामिल हैं. अफगानिस्तान के रास्ते कराची लौह अयस्क के ट्रांजिट रुट बनाने का मकसद नवाज शरीफ की होल्डिंग कंपनी 'इत्तेफाक ग्रुप ऑफ कंपनीज़ को फायदा पहुंचाना है. पाक के जाने-माने बिजनेस पत्रकार शाहिद उर रहमान ने अपने किताब व्हू ओन्स पाकिस्तान में लिखा है कि-1990 में जब नवाज शरीफ पाक के पीएम बने तो उन्होंने देश में निजीकरण औऱ उदारीकरण की नई इकोनोमिक पॉलिसी लाई. सरकार ने 115 कंपनियों का निजीकरण किया जिसमें 67 कंपनियों का वास्ता नवाज शरीफ की होल्डिंग कंपनी 'इत्तेफाक ग्रुप ऑफ कंपनीज़ से है. 'इत्तेफाक ग्रुप ऑफ कंपनीज़ के संस्थापक मियां मुहम्मद शरीफ की 2000 इसवीं में मौत होने के बाद कंपनी का बंटवारा दो भाई नवाज शरीफ और शाहबाज शरीफ में हुआ.नवाज शरीफ के मालिकाने हक में स्टील का पूरा कारोबार है.'इत्तेफाक ग्रुप ऑफ कंपनीज़ के वेबसाइट के मुताबिक कंपनी का कुल टर्नओवर 300 मिलियन डॉलर का है. जबकि रियल एस्टेट कंपनी का टर्नओवर 100 मिलियन डॉलर
पाकिस्तान में व्यापारी-जमींदार और सेना सबसे ताकतवर हैं और यही सरकार चलाते हैं. दोनों एक हैं और ये अपने फायदे के लिए हर तरह के डील्स करते हैं - असगर वजाहत पूर्व विभागाध्यक्ष, जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी

इन युद्धों पर दुनिया की रहेगी नजर

सूडान से सोमालिया तक, सीरिया से लेकर लीबिया तक और इराक से अफगानिस्तान तक, दुनिया को कई हिंसक सशस्त्र संघर्षों का सामना करना पड़ रहा है जो कि तीसरे विश्व युद्ध की स्थिति उत्पन्न कर सकता है. एक तरफ यह भी है कि शांति, आशावादी और काल्पनिक दुनिया में रहने वाले लोग भविष्य में इस तरह की किसी भी आपदा से इनकार करते हैं. लेकिन सच्चाई यह है, दुनिया पिछले दो विश्व युद्धों की तुलना में आज बेहद बदतर स्थिति में पहुंच गई है. संयोग से प्रथम विश्व युद्ध जब शुरू हुआ था और जब तक चला था, उसके 100 वर्ष पूरे हो चुके हैं, मतलब इसे फर्स्ट वर्ल्ड वार का शताब्दी समय कहा जा सकता है. पिछले 70 सालों से दुनिया की छिट पुट घटनाओं को छोड़ दिया जाए तो अभी तक शांति की स्थिति बनी हुई थी लेकिन हालिया माहौल को देखते हुए ऐसा लगता है कि कहीं तृतीय विश्व युद्ध की स्थिति तो पैदा नहीं हो रही. अगर तृतीय विश्व युद्ध नहीं भी होता है तो 2016 में ऐसे कई वजह है जिनके बुनियाद पर इन देशों में युद्ध की स्थिति बनी रह सकती है और दुनिया की इन देशों पर पैनी नजर रहेगी. इतना ही नहीं इन देशों में बन रही युद्ध की स्थिति पूरी दुनिया को युद्ध का दंश झेलने पर मजबूर कर सकती है. अभी दुनिया में आधी से ज्यादा लड़ाईयां धर्म के नाम पर लड़ी जा रही है और तेल पर कब्जा एक प्रमुख मुद्दा बन चुका है. इसके परिदृश्य में कई सत्ताएं गृह युद्ध की चपेट में आ चुकी हैं. तालीबान, बोकोहराम, अलकायदा और आईएसआईएस जैसे संगठन इस्लाम को ऐसे मोड़ पर खड़ा कर चुके हैं, जिससे प्रत्येक देश, जहां मुस्लिम समुदाय मौजूद है, उनकी मानसिकता से डर रहा है. खुद भारत में, जहां का इस्लाम अपेक्षाकृत उदार कहा जा रहा है, वहां भी इस्लामिक स्टेट के कद्रदान पाए जा रहे हैं. इसके अतिरिक्त कट्टर इस्लाम और आतंकवाद आज एक दुसरे के पूरक बन चुके हैं, इसलिए मुंबई और पेरिस जैसे हमलों की श्रृंखला बढ़ने के डर से तमाम देश कट्टरवादी इस्लामिक संगठनों के खिलाफ एकजुट हो रहे हैं तो अपने राजनैतिक और क्षेत्रीय हितों का स्वार्थ इनके सामने आ खड़ा हो रहा है. अब सीरिया का मामला ही ले लीजिए, समझना दिलचस्प होगा कि जिस प्रकार का दुस्साहस तुर्की ने रूस के विमान को गिराकर दिया है, उसके पीछे किस महाशक्ति का हाथ हो सकता है. अमेरिका, रूस और फ्रांस जैसे देशों से दुश्मनी लेना अबतक तो आईएस को भारी ही पड़ा है. वहीं रूसी विमानो को मार गिराए जाने से कूटनीतिक स्तर पर भी मतभेद उत्पन्न हो गए हैं. सीरिया में युद्ध के बाद से 11 मिलियन लोग लगभग देश की आधी से ज्यादा आबादी मुल्क को छोड़ चुकी है. लाखों सीरियाई लोग इस लड़ाई में मारे जा चुके हैं. सीरिया के आधे से ज्यादा हिस्से पर इस्लामिक स्टेट का कब्जा है. सद्दाम हुसैन को मारने के बाद अमेरिका ने यह समझ लिया कि ईराक में शांति आ गई, मगर यह अमेरिका की भूल थी. जानकार मानते हैं कि इराक युद्ध ने इस्लामिक स्टेट को खड़ा करने में अहम भूमिका निभाई है. इस्लामिक स्टेट ने इराक के सुन्नी-अरब प्रांतों पर कंट्रोल कर लिया है और उधर शिया समुदाय के विद्रोही प्रधानमंत्री हैदर-अल-अबादी पर लगातार दवाब डाल रहे हैं. शिया समुदाय और इस्लामिक स्टेट के बीच संघर्ष और युद्ध जारी है. पिछले महीने एक रूसी जंगी विमान को तुर्की द्वारा मार गिराए जाने के बाद रूस के लिए तुर्की आंखों की किरकिरी बन गया है. इस घटना से नाराज रूस ने तुर्की पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं. हाल में तुर्की की एक तस्वीर आई है जिसमें कई लड़ाकों को एसॉल्ट राइफल के साथ दिखाया गया है. भूले नहीं कि तुर्की का लंबे समय से कुर्दिस्तान वर्कर पार्टी से युद्ध होता रहा है. 1984 से जारी इस अंतहीन लड़ाई में अभी तक 30 हजार लोग मारे गए हैं. तुर्की में कुर्दों के आंदोलन को कुर्दिस्तान वर्कर पार्टी मदद पहुंचा रही है और यही सीरिया में इस्लामिक स्टेट से भी लड़ रही है. शिया ईरान और सुन्नी सऊदी अरब के झगड़े की कीमत यमन को चुकानी पड़ रही है. सऊदी अरब की अगुवाई में संयुक्त सेनाओं ने यमन में हॉसी विद्रोहियों पर हमले तेज किए. सऊदी अरब को डर है कि उसका पड़ोसी यमन कहीं ईरान के प्रभाव में न आ जाए. इसी आशंका के चलते सऊदी अरब की अगुवाई में संयुक्त सेनाओं ने यमनी सेना और हॉसी विद्रोहियों पर हवाई हमले शुरू किए. संयुक्त सेना ने यमनी सेना और शिया हॉसी विद्रोहियों की चौकियों को निशाना बनाया. संयुक्त सेनाओं ने राजधानी सना के राष्ट्रपति आवास पर भी हमले किए. लेबनान में शिया सरकार और इराक में बढ़ते शिया प्रभाव से सऊदी अरब बेचैन है. सऊदी राजशाही यमन में तेहरान के बढ़ते प्रभाव को किसी भी कीमत पर रोकना चाहती है. सऊदी सीमा से सटे सादा शहर को हॉसियों का गढ़ माना जाता है. लीबिया में इस्लामी कट्टरपंथियों और गैर इस्लामी बलों के बीच लंबे समय से संघर्ष चल रहा है. इस्लामिक गुट लीबिया डॉन ने अल-कायदा के जिहादियों के साथ हाथ मिला लिया है. इस संगठन ने 90 के दशक में गद्दाफी के खिलाफ हथियार उठाया था. केवल यही नहीं, इन दोनों गुटों को एक अन्य कट्टरपंथी संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड का समर्थन भी प्राप्त है. और इस वजह से इस क्षेत्र में कानून का राज खत्म हो गया है. इधर लीबिया में इस्लामिक स्टेट ने भी अपनी पैठ जमा ली है. लीबिया पर नाटो के हवाई हमले और फिर कर्नल गद्दाफी के मौत के बाद वहां लगातार सत्ता के लिए संघर्ष जारी है. भारत और पाकिस्तान के बीच किसी न किसी कारण से कभी भी युद्ध हो सकता है. चाहें वह कश्मीर का मुद्दा हो या फिर पाक समर्थित आतंकवाद का. पठानकोट हमले के बाद भारत अभी तक शांति बनाए हुए है लेकिन यह काफी थोड़े ही समय के लिए है. अगर भविष्य में ऐसी कोई दूसरी घटना होती है तो युद्ध की संभावना और बढ़ जाएगी. लेकिन यह युद्ध काफी भयावह परिणाम दे सकती है क्योंकि दोनों ही देश परमाणु हथियारों से संपन्न देश हैं. बीते दो सालों से चीन और जापान के संबंध भी कुछ ठीक नहीं दिखाई दे रहे. दोनों सेंकाकु द्वीप के आस पास खतरनाक खेल खेल रहे हैं. दोनों देशों की सेना इस द्वीप पर पहुंच चुकी है. किसी भी तरह के नौसेना या हवाई हमले की वजह से यहां की स्थिति युद्ध जैसे माहौल में बदल सकती है. अमेरिका के संबंध भी चीन और जापान के साथ कुछ अच्छे नहीं रहे हैं इस पर अमेरिका और जापान के बीच हुए एक समझौते के तहत अमेरिका को जापान की मदद करनी ही पड़ेगी. इसका परिणाम यह होगा कि युद्ध में अमेरिका के शामिल हो जाने से पूरा एशिया प्रशांत द्वीप इसमें शामिल हो जाएगा. वियतनाम और फिलिपींस भी समुद्री सीमा विवाद को लेकर चीन का विरोध करते रहे हैं. यूक्रेन के पूर्वी भाग में रूस समर्थक और सरकार विरोधी बल सशस्त्र संघर्ष में लगे हुए हैं. इस संघर्ष की शुरूआत वर्ष 2014 में यूक्रेनी क्रांति और उरोमाइडन आंदोलन के बाद शुरू हुई थी.अमेरिका सहित अन्य पश्चिमी देशों ने रूस पर आरोप लगाया है कि इसने पूर्वी यूक्रेनी पर जबरन कब्जा कर लिया है. वहीं रूस का कहना है कि यह केवल क्रीमिया में हुए जनमत संग्रह का असर है. यूक्रेन के समर्थन में अमेरिका और नाटो देशों के उतर जाने के बाद वहां की स्थिति और गंभीर हो गई है. इन देशों ने जहां रूस पर आर्थिक तौर पर पाबंदी लगा दी वहीं वह उसके खिलाफ भी खड़े हो गए. अगर नाटो देश रूस पर ज्यादा दबाव बनाने की कोशिश करते हैं तो इसके परिणाम भी काफी भयावह हो सकते हैं. ये दुनिया के सबसे ताकतवर देश हैं और परमामु हथियारों की संख्या इन देशों के पास सबसे अधिक है जो दुनिया के लिए चिंता का विषय है. दारफुर और देश के दक्षिणी क्षेत्रों में लगातार हो रही हिंसा की वजह से सूडान झुलस रहा है. अब तक हजारों की संख्या में लोग सरकारी बलों और सूडान लिबरेशन मूवमेंट/आर्मी (एसएलएम/ए) और जस्टिस एंड इक्वलिटी मूवमेन्ट (जेईएम) विद्रोही गुटों के बीच सशस्त्र संघर्ष में मारे गए हैं.

मंगलवार, 11 जनवरी 2011

अव्वल माओवाद न हो अलकायदा का आतंकवाद हो


आशुतोष जो कुछ कह रहे हैं उसका मतलब यह नहीं है कि आपके असहमति के स्वर कानून की नजर में वैध नहीं है . बल्कि आशुतोष यह कहना चाह रहे हैं कि आप भी व्यवस्था के अंग है और इस लिहाज से आपको भी कानून का सम्मान करना चाहिए . दरअसल आशुतोष के एक अख़बार में छपे लेख जिसमे उन्होंने लिखा है कि 'विनायक सेन अंग्रेजी बोलते हैं , अच्छे आदमी हैं , यह स्वागतयोग्य तथ्य है, लेकिन यह कहां का सच है कि मीडिया का एक तबका इस आधार पर यह प्रोजेक्ट करे कि बिनायक सेन अपराधी नहीं संत हैं, वह दोषी नहीं पीडि़त हैं।मीडिया अपनी प्रतिस्पर्धा में यह भूल गया कि बिनायक सेन के खिलाफ कार्रवाई किसी सरकारी एजेंसी ने नहीं, सीबीआई और पुलिस ने नहीं की है। अदालत में मुकदमा चला है। तथ्य और साक्ष्य के आधार पर जज महोदय ने फैसला सुनाया है। लेकिन दिल्ली के कुछ अंग्रेजीदां वामपंथ समर्थक विद्वान अदालत की मंशा पर सवाल खड़े कर रहे हैं।' मतलब साफ़ है आशुतोष की मंशा असहमति के स्वर के खिलाफ है . आशुतोष भी पूंजी -सैन्य के साम्राज्यवादी गठजोड़ के सुर -में सुर मिलाते यही कहना चाहते है की वैकल्पिक आन्दोलन का बचा -खुचा तेवर भी पापुलर मीडिया की तरह कुंद हो जाये और पापुलर मीडिया की तरह वैकल्पिक आन्दोलन भी व्यवस्था का अंग बनते जाने की व्यापक प्रक्रिया में शामिल हो जाये . हालाँकि आशुतोष का यह कहना भी गलत नहीं है . वैकल्पिक आन्दोलनों का क्या हश्र हुआ , यह हम सभी जानते हैं . इस निराशाजनक और विकल्पहीन परिदृश्य में पिछले चार दशकों में उभरे वैकल्पिक आन्दोलन और तत्कालीन शासक वर्ग के खिलाफ असहमति और अवज्ञा के आन्दोलन पर एक नजर डालें तो वो सारा प्रपंच उभर कर सामने आ जाता है कि किस तरह पूंजी -सैनिक और नौकरशाह के साम्राज्यवादी गठजोड़ के तंत्र ने वैकल्पिक आन्दोलन को धन के दुष्चक्र में फंसा कर कुंद कर दिया . सामाजिक आन्दोलन चाहे वो पर्यावरण से जुड़ा हो या मानवाधिकार से , इसके दुर्गति का कारण बड़े पैमाने पर अंतर्राष्ट्रीय पूंजी का घुसपैठ है . वर्ल्ड बैंक या विकसित मुल्कों ने एनजीओ के माध्यम से मुफ्त में इन आन्दोलनों के ऊपर अनाप -शनाप धन की वर्षा नहीं कर दी . इसमें इनके अपने छिपे एजेंडे हैं . दरअसल बड़े पैमाने पर व्यवस्था द्वारा अपने जाल में फंसाने का यह क्रम काफी गहरा और व्यापक है . व्यवस्था बहुत चालाकी के साथ प्रतिरोध और विविधता के ताकतों को पहले खासी छुट देती है और फिर आसानी से बाजारीकरण की प्रक्रिया में शामिल कर लेती है . वैकल्पिक आन्दोलनों को व्यवस्था द्वारा हडपे जाने की यह समस्या अब काफी गंभीर हो चुकी है . जनता के चिंतन को प्रभावित करने वाले बुद्धिजीवियों और प्रमुख कार्यकर्ताओं को ख़रीदा जा रहा है . यह खरीददारी मोटे पारिश्रमिकों , प्रोजेक्ट , यात्रा खर्चों और विदेशी यात्राओं के जरिये ही नहीं की जा रही है बल्कि और भी गहराई में जाकर मान्यता और प्रशस्ति के जरिये उन्हें व्यवस्था में अंगीकार कर भी की जा रही है . बाजारीकरण के जरिये व्यवस्था का अंग बनते चले जाने की इस प्रक्रिया में मीडिया की भूमिका सबसे ज्यादा संदिग्ध है .. क्योंकि कारपोरेट अर्थतंत्र पर दौड़ने वाली मीडिया विभिन्न असहमतियों को बाजार के प्रतिमान की तरफ धकेलनेवाला वाला सबसे शक्तिशाली उत्प्रेरक है . आशुतोष आज विनायक सेन की सजा को जिस तरह न्यायसंगत ठहराने की साजिश रच रहें हैं , उसके पीछे बाजार का दवाब है और आशुतोष पूंजी -सैन्य -नौकरशाह के घोषित गठजोड़ का कारपोरेट एजेंट . वो जिस मंशा से कानून का सम्मान करने की बात कह रहें है , इसका तो यही मतलब है कि विनायक सेन चोर हैं , हत्यारा हैं या फिर कानून की नजर में कोई गंभीर अपराधी . इसलिए उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी है .

बड़ी चालाकी से मीडिया के हाईपर एक्टिविटी को दोषी ठहराते आशुतोष ये फैसला भी सुना जाते हैं की विनायक सेन देशद्रोही हैं . उन्हें ये बात नागवार गुजर रही है की नागरिक समाज क्यों विनायक सेन के पक्ष में लामबंद हो रहा है .वो चाहते हैं की लोग कानून के फैसले का सम्मान करें. वो कहते हैं की मीडिया अति सक्रियतावाद के उत्साह में जज बनती जा रही है . लेकिन दूसरी तरफ आशुतोष खुद जज बन फैसला सुनाने लगते हैं . इतना ही नहीं आशुतोष लक्ष्मण रेखा की लाज बचाते वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे का सहारा ले रहें हैं .मनो उनका कहा ही अंतिम सत्य है . हरीश साल्वे कह रहे हैं कि अदालत से गलती हो सकती है, वह गलत फैसला सुना सकती है, हो सकता है आजीवन कारावास उचित सजा न हो, हो सकता है अतिउत्साह में उनके खिलाफ कार्रवाई हुई हो, लेकिन यह फैसला भारतीय संविधान के सिद्धांतों के तहत गठित अदालत का है और उसका सम्मान होना चाहिए। उसके फैसले पर अगर किसी को आपत्ति है तो उसका निराकरण अदालत की मंशा को कठघरे में खड़ा कर के नहीं किया जा सकता है, न ही सड़कों पर माहौल बना कर। यह कानून के शासन का अपमान है। कानून का विक्टोरियन ककहरा पढने वाले हरीश साल्वे वही वकील हैं , जिनकी शिकायत पर सुप्रीम कोर्ट के चर्चित वकील प्रशांत भूषण पर अवमानना का मुकदमा चल रहा है और प्रशांत भूषण वही वकील हैं जिन्होंने ख़म ठोक कर कहा था की सुप्रीम कोर्ट के आधे से ज्यादा जज भ्रष्ट हैं . यहाँ सवाल यह नहीं है की कौन सही है या कौन गलत . मगर इतना तो तय है की न्याय की निर्दिष्ट संज्ञा भी अब राज्य द्वारा तय की जाती है . एक तरफ राज्य के लिए अपनी सम्पति रक्षा के लिए हिंसा का प्रयोग वैध है तो दूसरी तरफ वंचित आदिवासियों का जी पाने के लिए किया गया प्रतिरोध हिंसा और अवैध .



पेशे से वकील और कानून की वैधता पर बराबर टिप्पणी करने वाले कनक तिवारी जब बोलते हैं तो ख़म ठोक कर बोलते हैं . बिनायक सेन के मामले को वो नजदीक से जानते हैं . कभी बिनायक सेन के लिए वकील भी थे . वो मानते हैं की पहली ज़मानत की अर्ज़ी के दरम्यान यह मनोरंजक बात मेरे सामने आई थी कि नारायण सान्याल को जब कत्ल के मामले में आंध्रप्रदेश पुलिस ने गिरफ्तार कर छत्तीसगढ़ पुलिस को सौंप दिया था तब उसके कुछ अरसा बाद ही छत्तीसगढ़ जन सुरक्षा अधिनियम लागू किया गया. इस तरह नारायण सान्याल को ही नक्सलवादी घोषित करना तकनीकी तौर पर संभव नहीं था. सान्याल द्वारा दी चिट्ठियां जेल के अंदर यदि किसी व्यक्ति को दी गईं तो जेल के संबंधित अधिकारी अपनी वैधानिक ज़िम्मेदारी से कैसे बरी कर दिए गए? जेल नियम इस संबंध में मुलाकातियों के लिए तो काफी सख्त हैं. अब भला कानून महज नारायण सान्याल को चिट्ठी पहुचाने वाले विनायक सेन को कैसे नक्सल मान कर फैसले सुना रही है .और सजा भी सुना रही है तो आजीवन कारावास की . इस मामले का सबसे हैरान कर देने वाला पक्ष तो ये है की सरकारी वकील ने बिनायक सेन को देशद्रोही ठहराने के लिए कार्ल मार्क्स की किताब दास केपिटल को ढाल बनाया . वकील महोदय के मुताबिक दास केपिटल आतंकवादियों की किताब है . एक कहावत है सब धन बाईस पसेरी . संसदीय लोकतंत्र में आन्दोलन करना ही सबसे बड़ा अपराध है और अगर ऊपर से आपकी आस्था माओवादियों के विचार से मेल खाने लगे तो आप भी देशद्रोही साबित कर दिए जायेंगे .शासक वर्ग वामपंथ की समूची धरा को ही सब धन बाईस पसेरी की निगाह से देखती है . वामपंथ मतलब उग्रवादी , देशद्रोही . किसी ने सही कहा है छत्तीसगढ़ के आदिवासी का मतलब माओवादी . अभी छत्तीसगढ़ सरकार का एक विज्ञापन आया है . विज्ञापन में दिखाया गया है की माओवादियों के कारण बच्चों के शिक्षा के मौलिक आधिकार का हनन हो रहा है . चलिए संसदीय राजनीति में शासक वर्ग की अपनी मज़बूरी है , मगर मीडिया की ऐसी क्या मज़बूरी जो वो सत्ता द्वारा प्रचारित धारणा से ही ग्रसित हो जाती है . आशुतोष की मान्यता एक धीर -गंभीर पत्रकार की है . मगर अपनी इस टिप्पणी के बाद वो लालकृष्ण आडवाणी के समकक्ष खड़े नजर आते हैं . १९९८ में जब लाल कृष्ण आडवाणी गृहमंत्री थे , तब उन्होंने नक्सल प्रभावित राज्यों के सम्मलेन में कहा था , नक्सलवाद भारतीय स्वप्न का शत्रु है और हमें मिल -जुल कर इस शत्रु को समाप्त करना चाहिए . अव्वल नक्सलवाद न हो अल कायदा का आतंकवाद हो . सालों पहले नेपाल के माओवादी आन्दोलन को अमेरिका के राजदूत माइकल मलिनोवासकी ने अलकायदा की संज्ञा दे डाली थी . जबकि नेपाल के लोग इसे जन विद्रोह कहते हैं और अब तो माओवादी पार्टी जनता के द्वारा चुना गया नेपाल का सबसे बड़ा राजनीतिक दल भी .

हालाँकि जहां तक विनायक सेन को सुनाई गई सजा का सवाल है, तो उस फैसले में उन्हें माओवादियों का समर्थक और संदेशवाहक बताया गया है, माओवादी नहीं. देश ही नहीं, दुनिया भर में इस फैसले की खामियों की ओर उंगलियां उठ रही हैं. यहाँ मुझे राजेश जोशी की वो कविता याद आ रही है - मारे जायेंगे !!!

रविवार, 19 दिसंबर 2010

पैरवी भोगवाद की

एक और पुंसवादी फैसला .कोर्ट अब बेड रूम के मुतल्लिक भी फैसले लेने लगी है .लिव इन रिलेसनसिप पर आया कोर्ट की परिभाषा पुंसवादी ही है . संभोग के दौरान औरत की सहमती थी या नहीं , यह एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है , जिसे एक औरत ही परिभाषित कर सकती है . कानून नहीं . कानून की धारा या व्याख्या नर -पुंगवों ने अपनी मर्दानगी की सत्ता बनाने के लिए गढ़ी है यह कौन नहीं जनता है कि किसी भी औरत को सम्भोग से पूर्व रिझाना पड़ता है और रिझाने कि प्रक्रिया में वायदे और समझौते भी करने पड़ते हैं , जो कि एक नेचुरल फिनोमिना है .लिव इन रिलेसन सिप और विवाह संस्था में सिर्फ एक बारीक़ सा अंतर है . विवाह भी मर्द को औरत के साथ सम्भोग की वैधानिकता देता है और लिव इन रिलेसन सिप में भी संभोग से पूर्व मर्द और औरत के बीच करार और समझौते किये जाते हैं . लेकिन सवाल है की सम्भोग के दौरान शारीर की रजामंदी महत्वपूर्ण है या मन और दिल की सहमति. ज्वाइंट वुमेन प्रोग्राम का एक सर्वे है , जिसमे कहा गया है की प्रतिदिन सात में से एक औरत अपने पति के द्वरा बलत्कृत होती है . ये औरते मुकदमा इसलिए नहीं कर सकती , क्योंकि कानून इसके पक्ष में नहीं है और समाज इस बात की इजाजत नहीं देता .
पंचायत का तंत्र वर्चस्वशील पुरुष व्यवस्था द्वारा संचालित है . वही नियामक है . सुप्रीम कोर्ट से लेकर निचली अदालत तक महिला जजों का अनुपात पुरुषों की तुलना में न्यून ही है . जाहिर है फैसले भी पुरूषों के पक्ष में ही आयेंगे . २००७ में सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के प्रदीप कुमार के मामले में एक हैरतंगेज फैसला दिया था .मामला था की प्रदीप कुमार नाम के व्यक्ति ने एक लड़की के साथ शादी का वायदा कर उससे देहिक संबध बनाया . प्रदीप ने जब उस लड़की से शादी नहीं की तो उसने वादाखिलाफी के तहत प्रदीप पर बलात्कार का मुकदमा दर्ज किया . निचली अदालत में प्रदीप पर आरोप तय हुआ और पटना हाई कोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले को बरक़रार रखा ... इस आदेश के खिलाफ जब प्रदीप कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की तो कोर्ट ने प्रदीप के पक्ष में फैसला सुनाया . कोर्ट का तर्क था की शादी के वायदे पर किसी लड़की की सहमति से किया गया सहवास बलात्कार नहीं है , यदि ऐसी सहमति डरा कर या उत्पीडित कर न ली गयी हो . सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय काफी हद तक लाइसेंस टू रेप की अवधारणा से अभिप्रेत है . सेक्स का ताल्लुक सिर्फ शरीर से नहीं है मन से भी है . मन और तन का समर्पण दवाई की खुराक की तरह रोजाना नहीं हो सकता . यह विरल क्षण हफ्ते में दो -चार दिन ही आ सकते हैं . हरेक दिन नहीं . बांकी दिन का सम्भोग तो बलात्कार ही कहलायेगा . प्रदीप और पीडिता साथ -साथ रहते थे .. लिव इन रिलेसनसिप में . कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले से भारतीय मर्दानगी को फिर से सांड होने की खुली छुट मिल गयी है . संकेत स्पष्ट है . औरत के साथ सम्भोग का मालिकाना हक़ तो मर्दों को मिला ही है , अब इस फैसले से मर्दों ने औरतन पर यूज एंड थ्रो का वैधानिक अधिकार भी पेटेंट करवा लिया . मतलब साफ़ है कंजूमर कल्चर की तरह अदालत भी अब भोगवाद की पैरवी कर रही है .
इक्कीसवीं सदी के पब्लिक डोमेन भी बलात्कार को इज्जत लुटने से जोड़कर देखा जाता है . मतलब दया और सहानुभूति की मरहम -पट्टी तक ही इस समाज में इसके इलाज की व्यवस्था है . अगर हम इसे इज्जत जाना न मानकर हिंसा माने तो संभव है बांकी हिंसा के शिकार की तरह बलत्कृत औरतों में भी आक्रोश होगा अपराधबोध नहीं ... बलात्कार की मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया काफी जटिल है .इस पर कोई एक तर्क लागु नहीं हो सकता . बलात्कार स्त्री के स्त्री होने की अस्मिता का ही हनन नहीं करता , उसके मन में भावात्मक और मानवीय संबंधों के बारे भी संशय पैदा करता है . स्त्री में चाहे कितना भी रोष हो वह द्वन्द की स्थिति में रहती है .दरअसल सच तो ये है की सच्चरित्रता और पतिव्रता की जो घुट्टी हजारों साल से स्त्री को पिलाई जा रही है , उसी की आड़ में मर्दानगी उसे बार -बार कुचलती -मसलती आ रही है .

शनिवार, 18 दिसंबर 2010

सारा झगडा मेरिट को लेकर

सारा झगडा मेरिट को लेकर है . इसकी पवित्रता और श्रेष्टता बचाने को लेकर है . मानो मेरिट न हो तिजोरी में राखी असरफी हो , धर्मग्रन्थ हो, पुरखो की वसीयत हो . तभी तो इस मेरिट के रक्षा में अब न्यायपालिका भी साथ देने लगी है .पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी में कम से कम ४.५० लाख तक के आमदनी वाले को क्रीमी लेयर के तहत रखने के केंद्र के फैसले को ख़ारिज करते चुनौती वाले याचिका को स्वीकार कर लिया .मतलब अब सुनवाई होगी , फिर लम्बा खिचेगा आरक्षण का मामला .जाहिर है न्यायपालिका की भी नियत स्पष्ट नहीं है . हालाँकि इजारेदारी की यह नीव वैदिक काल में ही पड़ी थी , लेकिन इसे अमलीजामा मौर्यकाल में कौटिल्य के अर्थशास्त्र ने पहनाया . आश्चर्य है कि लोकशाही के तहत काम करने वाली न्यायिक संस्था अभी भी उसी अर्थशास्त्र और धर्मसूत्र के विधान द्वारा तय किये गए ढांचे पर ही काम कर रही हैसारा झगडा मेरिट को लेकर है . इसकी पवित्रता और श्रेष्टता बचाने को लेकर है . मानो मेरिट न हो तिजोरी में राखी असरफी हो , धर्मग्रन्थ हो, पुरखो की वसीयत हो . तभी तो इस मेरिट के रक्षा में अब न्यायपालिका भी साथ देने लगी है .पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी में कम से कम ४.५० लाख तक के आमदनी वाले को क्रीमी लेयर के तहत रखने के केंद्र के फैसले को ख़ारिज करते चुनौती वाले याचिका को स्वीकार कर लिया .मतलब अब सुनवाई होगी , फिर लम्बा खिचेगा आरक्षण का मामला .जाहिर है न्यायपालिका की भी नियत स्पष्ट नहीं है . हालाँकि इजारेदारी की यह नीव वैदिक काल में ही पड़ी थी , लेकिन इसे अमलीजामा मौर्यकाल में कौटिल्य के अर्थशास्त्र ने पहनाया . आश्चर्य है कि लोकशाही के तहत काम करने वाली न्यायिक संस्था अभी भी उसी अर्थशास्त्र और धर्मसूत्र के विधान द्वारा तय किये गए ढांचे पर ही काम कर रही है आरक्षण के जरिये जब ओबीसी और दलितों को उच्च आधिकारिक पदों पर पहुँचने के रास्ते खोलने की कवायद की जा रही हो तो एक बार फिर पुराने धर्मसूत्र और विधान फन काढ खड़े हो गए हैं . न्यायपालिका का ये फैसला ब्राह्मणवाद का आधुनिक संस्करण है . पहले वेद ज्ञान निषिद्ध था और अब मनेजमेंट , इंजीनियरिंग और चिकित्षा ज्ञान निषिद्ध है .क्योंकि नयी नालेज इकोनोमी में ये ज्ञान ही धन ही समृद्धि के पासपोर्ट हैं . ओबीसी के मलाई दार तबका तो धन के बल पर इस पासपोर्ट को हासिल कर लेता है , मगर बांकी अनुसूचित जनजाति , दुसाध , मुशहर , पासी , इबिसी इससे वंचित ही रहते हैं .पिछले डेढ़ दशक के दौरान जिस नए भूमंडलीय शासक वर्ग का जन्म हुआ है , वह इतनी आसानी से इस पवित्र वर्ग सरंचना में ओबीसी और दलितों को कैसे प्रवेश करने देगा . यही कारण है कि द्विज आधुनिकता के नए युवा ब्रिगेड जो खुद को समानता का झंडावरदार बताती है यूथ फॉर इक्वलिटी सड़कों पर झाड़ू लगा , जूता पोलिस कर उंच -नीच का प्रदर्शन करने लगती है . दरअसल ये जताना चाहते हैं कि रिसर्वद क्लास सिर्फ वे ही हैं . आर्थिक संसाधन ,आधुनिकता और प्रौधिगिकी पर सिर्फ उनका ही विशेषाधिकार है . कहना न होगा कि आईआईम और आईआईटी की शिक्षा में छिपी साम्राज्यवादी मनोवृति , ऊँची फ़ीस और जीवनशैली ने इन युवाओं को अवसरवाद के आत्मकेंद्रित युग में धकेल दिया है . नब्बे के दशक में मंडल विरोध के ठीक उलट अब ओबीसी आरक्षण के खिलाफ जो नया मध्य वर्ग लामबंद है वो भूमंडलीकरण की पैदाइश है , जो अभी तुरंत -फुरत अभिजन बने हैं . भले ही यह विरोधाभासी लगे , लेकिन शिक्षित ग्लोबल मध्य वर्ग का प्रौधिगिकीय आभिजात्य और आधुनिक द्विज का सांप्रदायिक आभिजात्य दोनों मिलकर सत्ता और प्राधिकार के प्रभुत्ववादी ढांचे के निर्माण में जुट गए हैं . इसमें सबसे ज्यादा नुकसान दलित , कामगार , जनजातियों और आदिवासियों का ही हो रहा है . मेरिट कोई ईश्वरीय वरदान या सन्देश नहीं है . मेरिट अर्जित की हुई संपत्ति है . सवर्णों को मेरिट फेक्टरी आईआईएम् और आई आई टी में तो आरक्षण नैतिक रूप से उपलब्ध है . मगर दलितों के पास इतनी आर्थिक संसाधन कहाँ जो ये प्रोडक्ट खरीद सके . हाँ जब कानून बना कर उन्हें इस प्रोडक्ट को खरीदने लायक बनाने की कवायद की जा रही तो ,इसमें सवर्णों को डरने की जरुरत क्यों . नए ज़माने के द्विज भूलते जा रहें हैं की तकनीकी और प्रौधिगिकी ज्ञान हासिल करने का हक़ सिर्फ उनको ही नहीं , बल्कि दलितों और आदिवासियों का भी है . इसके जवाब में ये बड़ा ही हैरतंगेज तर्क देते हैं और चिल्ला कर कहते हैं की आरक्षण देकर मेरिट को मत मारो , दलितों , पिछड़ों को मुफ्त में प्राथमिक शिक्षा दो .यह कहते हुए वे शायद ये भूल रहें है की शिक्षा नीति बनाने का जिम्मा भी उन्ही के पास था . दरअसल प्राथमिक शिक्षा कभी सवर्णों की समस्या थी ही नहीं . उनकी जरुरत उच्चतर शिक्षा थी , तकनीकी और प्रौधिगिकी कौशल हाशिल करनी थी . इसलिए सवर्णों के सुविधा के लिहाज से ही आई आई एम् और आई आई टी जैसे सरकारी संस्थाओं की नीव डाली गयी और उच्चतरशिक्षा में ज्यादा निवेश किया गया .