सोमवार, 25 जनवरी 2016

इन युद्धों पर दुनिया की रहेगी नजर

सूडान से सोमालिया तक, सीरिया से लेकर लीबिया तक और इराक से अफगानिस्तान तक, दुनिया को कई हिंसक सशस्त्र संघर्षों का सामना करना पड़ रहा है जो कि तीसरे विश्व युद्ध की स्थिति उत्पन्न कर सकता है. एक तरफ यह भी है कि शांति, आशावादी और काल्पनिक दुनिया में रहने वाले लोग भविष्य में इस तरह की किसी भी आपदा से इनकार करते हैं. लेकिन सच्चाई यह है, दुनिया पिछले दो विश्व युद्धों की तुलना में आज बेहद बदतर स्थिति में पहुंच गई है. संयोग से प्रथम विश्व युद्ध जब शुरू हुआ था और जब तक चला था, उसके 100 वर्ष पूरे हो चुके हैं, मतलब इसे फर्स्ट वर्ल्ड वार का शताब्दी समय कहा जा सकता है. पिछले 70 सालों से दुनिया की छिट पुट घटनाओं को छोड़ दिया जाए तो अभी तक शांति की स्थिति बनी हुई थी लेकिन हालिया माहौल को देखते हुए ऐसा लगता है कि कहीं तृतीय विश्व युद्ध की स्थिति तो पैदा नहीं हो रही. अगर तृतीय विश्व युद्ध नहीं भी होता है तो 2016 में ऐसे कई वजह है जिनके बुनियाद पर इन देशों में युद्ध की स्थिति बनी रह सकती है और दुनिया की इन देशों पर पैनी नजर रहेगी. इतना ही नहीं इन देशों में बन रही युद्ध की स्थिति पूरी दुनिया को युद्ध का दंश झेलने पर मजबूर कर सकती है. अभी दुनिया में आधी से ज्यादा लड़ाईयां धर्म के नाम पर लड़ी जा रही है और तेल पर कब्जा एक प्रमुख मुद्दा बन चुका है. इसके परिदृश्य में कई सत्ताएं गृह युद्ध की चपेट में आ चुकी हैं. तालीबान, बोकोहराम, अलकायदा और आईएसआईएस जैसे संगठन इस्लाम को ऐसे मोड़ पर खड़ा कर चुके हैं, जिससे प्रत्येक देश, जहां मुस्लिम समुदाय मौजूद है, उनकी मानसिकता से डर रहा है. खुद भारत में, जहां का इस्लाम अपेक्षाकृत उदार कहा जा रहा है, वहां भी इस्लामिक स्टेट के कद्रदान पाए जा रहे हैं. इसके अतिरिक्त कट्टर इस्लाम और आतंकवाद आज एक दुसरे के पूरक बन चुके हैं, इसलिए मुंबई और पेरिस जैसे हमलों की श्रृंखला बढ़ने के डर से तमाम देश कट्टरवादी इस्लामिक संगठनों के खिलाफ एकजुट हो रहे हैं तो अपने राजनैतिक और क्षेत्रीय हितों का स्वार्थ इनके सामने आ खड़ा हो रहा है. अब सीरिया का मामला ही ले लीजिए, समझना दिलचस्प होगा कि जिस प्रकार का दुस्साहस तुर्की ने रूस के विमान को गिराकर दिया है, उसके पीछे किस महाशक्ति का हाथ हो सकता है. अमेरिका, रूस और फ्रांस जैसे देशों से दुश्मनी लेना अबतक तो आईएस को भारी ही पड़ा है. वहीं रूसी विमानो को मार गिराए जाने से कूटनीतिक स्तर पर भी मतभेद उत्पन्न हो गए हैं. सीरिया में युद्ध के बाद से 11 मिलियन लोग लगभग देश की आधी से ज्यादा आबादी मुल्क को छोड़ चुकी है. लाखों सीरियाई लोग इस लड़ाई में मारे जा चुके हैं. सीरिया के आधे से ज्यादा हिस्से पर इस्लामिक स्टेट का कब्जा है. सद्दाम हुसैन को मारने के बाद अमेरिका ने यह समझ लिया कि ईराक में शांति आ गई, मगर यह अमेरिका की भूल थी. जानकार मानते हैं कि इराक युद्ध ने इस्लामिक स्टेट को खड़ा करने में अहम भूमिका निभाई है. इस्लामिक स्टेट ने इराक के सुन्नी-अरब प्रांतों पर कंट्रोल कर लिया है और उधर शिया समुदाय के विद्रोही प्रधानमंत्री हैदर-अल-अबादी पर लगातार दवाब डाल रहे हैं. शिया समुदाय और इस्लामिक स्टेट के बीच संघर्ष और युद्ध जारी है. पिछले महीने एक रूसी जंगी विमान को तुर्की द्वारा मार गिराए जाने के बाद रूस के लिए तुर्की आंखों की किरकिरी बन गया है. इस घटना से नाराज रूस ने तुर्की पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं. हाल में तुर्की की एक तस्वीर आई है जिसमें कई लड़ाकों को एसॉल्ट राइफल के साथ दिखाया गया है. भूले नहीं कि तुर्की का लंबे समय से कुर्दिस्तान वर्कर पार्टी से युद्ध होता रहा है. 1984 से जारी इस अंतहीन लड़ाई में अभी तक 30 हजार लोग मारे गए हैं. तुर्की में कुर्दों के आंदोलन को कुर्दिस्तान वर्कर पार्टी मदद पहुंचा रही है और यही सीरिया में इस्लामिक स्टेट से भी लड़ रही है. शिया ईरान और सुन्नी सऊदी अरब के झगड़े की कीमत यमन को चुकानी पड़ रही है. सऊदी अरब की अगुवाई में संयुक्त सेनाओं ने यमन में हॉसी विद्रोहियों पर हमले तेज किए. सऊदी अरब को डर है कि उसका पड़ोसी यमन कहीं ईरान के प्रभाव में न आ जाए. इसी आशंका के चलते सऊदी अरब की अगुवाई में संयुक्त सेनाओं ने यमनी सेना और हॉसी विद्रोहियों पर हवाई हमले शुरू किए. संयुक्त सेना ने यमनी सेना और शिया हॉसी विद्रोहियों की चौकियों को निशाना बनाया. संयुक्त सेनाओं ने राजधानी सना के राष्ट्रपति आवास पर भी हमले किए. लेबनान में शिया सरकार और इराक में बढ़ते शिया प्रभाव से सऊदी अरब बेचैन है. सऊदी राजशाही यमन में तेहरान के बढ़ते प्रभाव को किसी भी कीमत पर रोकना चाहती है. सऊदी सीमा से सटे सादा शहर को हॉसियों का गढ़ माना जाता है. लीबिया में इस्लामी कट्टरपंथियों और गैर इस्लामी बलों के बीच लंबे समय से संघर्ष चल रहा है. इस्लामिक गुट लीबिया डॉन ने अल-कायदा के जिहादियों के साथ हाथ मिला लिया है. इस संगठन ने 90 के दशक में गद्दाफी के खिलाफ हथियार उठाया था. केवल यही नहीं, इन दोनों गुटों को एक अन्य कट्टरपंथी संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड का समर्थन भी प्राप्त है. और इस वजह से इस क्षेत्र में कानून का राज खत्म हो गया है. इधर लीबिया में इस्लामिक स्टेट ने भी अपनी पैठ जमा ली है. लीबिया पर नाटो के हवाई हमले और फिर कर्नल गद्दाफी के मौत के बाद वहां लगातार सत्ता के लिए संघर्ष जारी है. भारत और पाकिस्तान के बीच किसी न किसी कारण से कभी भी युद्ध हो सकता है. चाहें वह कश्मीर का मुद्दा हो या फिर पाक समर्थित आतंकवाद का. पठानकोट हमले के बाद भारत अभी तक शांति बनाए हुए है लेकिन यह काफी थोड़े ही समय के लिए है. अगर भविष्य में ऐसी कोई दूसरी घटना होती है तो युद्ध की संभावना और बढ़ जाएगी. लेकिन यह युद्ध काफी भयावह परिणाम दे सकती है क्योंकि दोनों ही देश परमाणु हथियारों से संपन्न देश हैं. बीते दो सालों से चीन और जापान के संबंध भी कुछ ठीक नहीं दिखाई दे रहे. दोनों सेंकाकु द्वीप के आस पास खतरनाक खेल खेल रहे हैं. दोनों देशों की सेना इस द्वीप पर पहुंच चुकी है. किसी भी तरह के नौसेना या हवाई हमले की वजह से यहां की स्थिति युद्ध जैसे माहौल में बदल सकती है. अमेरिका के संबंध भी चीन और जापान के साथ कुछ अच्छे नहीं रहे हैं इस पर अमेरिका और जापान के बीच हुए एक समझौते के तहत अमेरिका को जापान की मदद करनी ही पड़ेगी. इसका परिणाम यह होगा कि युद्ध में अमेरिका के शामिल हो जाने से पूरा एशिया प्रशांत द्वीप इसमें शामिल हो जाएगा. वियतनाम और फिलिपींस भी समुद्री सीमा विवाद को लेकर चीन का विरोध करते रहे हैं. यूक्रेन के पूर्वी भाग में रूस समर्थक और सरकार विरोधी बल सशस्त्र संघर्ष में लगे हुए हैं. इस संघर्ष की शुरूआत वर्ष 2014 में यूक्रेनी क्रांति और उरोमाइडन आंदोलन के बाद शुरू हुई थी.अमेरिका सहित अन्य पश्चिमी देशों ने रूस पर आरोप लगाया है कि इसने पूर्वी यूक्रेनी पर जबरन कब्जा कर लिया है. वहीं रूस का कहना है कि यह केवल क्रीमिया में हुए जनमत संग्रह का असर है. यूक्रेन के समर्थन में अमेरिका और नाटो देशों के उतर जाने के बाद वहां की स्थिति और गंभीर हो गई है. इन देशों ने जहां रूस पर आर्थिक तौर पर पाबंदी लगा दी वहीं वह उसके खिलाफ भी खड़े हो गए. अगर नाटो देश रूस पर ज्यादा दबाव बनाने की कोशिश करते हैं तो इसके परिणाम भी काफी भयावह हो सकते हैं. ये दुनिया के सबसे ताकतवर देश हैं और परमामु हथियारों की संख्या इन देशों के पास सबसे अधिक है जो दुनिया के लिए चिंता का विषय है. दारफुर और देश के दक्षिणी क्षेत्रों में लगातार हो रही हिंसा की वजह से सूडान झुलस रहा है. अब तक हजारों की संख्या में लोग सरकारी बलों और सूडान लिबरेशन मूवमेंट/आर्मी (एसएलएम/ए) और जस्टिस एंड इक्वलिटी मूवमेन्ट (जेईएम) विद्रोही गुटों के बीच सशस्त्र संघर्ष में मारे गए हैं.

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