शनिवार, 18 दिसंबर 2010

सारा झगडा मेरिट को लेकर

सारा झगडा मेरिट को लेकर है . इसकी पवित्रता और श्रेष्टता बचाने को लेकर है . मानो मेरिट न हो तिजोरी में राखी असरफी हो , धर्मग्रन्थ हो, पुरखो की वसीयत हो . तभी तो इस मेरिट के रक्षा में अब न्यायपालिका भी साथ देने लगी है .पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी में कम से कम ४.५० लाख तक के आमदनी वाले को क्रीमी लेयर के तहत रखने के केंद्र के फैसले को ख़ारिज करते चुनौती वाले याचिका को स्वीकार कर लिया .मतलब अब सुनवाई होगी , फिर लम्बा खिचेगा आरक्षण का मामला .जाहिर है न्यायपालिका की भी नियत स्पष्ट नहीं है . हालाँकि इजारेदारी की यह नीव वैदिक काल में ही पड़ी थी , लेकिन इसे अमलीजामा मौर्यकाल में कौटिल्य के अर्थशास्त्र ने पहनाया . आश्चर्य है कि लोकशाही के तहत काम करने वाली न्यायिक संस्था अभी भी उसी अर्थशास्त्र और धर्मसूत्र के विधान द्वारा तय किये गए ढांचे पर ही काम कर रही हैसारा झगडा मेरिट को लेकर है . इसकी पवित्रता और श्रेष्टता बचाने को लेकर है . मानो मेरिट न हो तिजोरी में राखी असरफी हो , धर्मग्रन्थ हो, पुरखो की वसीयत हो . तभी तो इस मेरिट के रक्षा में अब न्यायपालिका भी साथ देने लगी है .पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी में कम से कम ४.५० लाख तक के आमदनी वाले को क्रीमी लेयर के तहत रखने के केंद्र के फैसले को ख़ारिज करते चुनौती वाले याचिका को स्वीकार कर लिया .मतलब अब सुनवाई होगी , फिर लम्बा खिचेगा आरक्षण का मामला .जाहिर है न्यायपालिका की भी नियत स्पष्ट नहीं है . हालाँकि इजारेदारी की यह नीव वैदिक काल में ही पड़ी थी , लेकिन इसे अमलीजामा मौर्यकाल में कौटिल्य के अर्थशास्त्र ने पहनाया . आश्चर्य है कि लोकशाही के तहत काम करने वाली न्यायिक संस्था अभी भी उसी अर्थशास्त्र और धर्मसूत्र के विधान द्वारा तय किये गए ढांचे पर ही काम कर रही है आरक्षण के जरिये जब ओबीसी और दलितों को उच्च आधिकारिक पदों पर पहुँचने के रास्ते खोलने की कवायद की जा रही हो तो एक बार फिर पुराने धर्मसूत्र और विधान फन काढ खड़े हो गए हैं . न्यायपालिका का ये फैसला ब्राह्मणवाद का आधुनिक संस्करण है . पहले वेद ज्ञान निषिद्ध था और अब मनेजमेंट , इंजीनियरिंग और चिकित्षा ज्ञान निषिद्ध है .क्योंकि नयी नालेज इकोनोमी में ये ज्ञान ही धन ही समृद्धि के पासपोर्ट हैं . ओबीसी के मलाई दार तबका तो धन के बल पर इस पासपोर्ट को हासिल कर लेता है , मगर बांकी अनुसूचित जनजाति , दुसाध , मुशहर , पासी , इबिसी इससे वंचित ही रहते हैं .पिछले डेढ़ दशक के दौरान जिस नए भूमंडलीय शासक वर्ग का जन्म हुआ है , वह इतनी आसानी से इस पवित्र वर्ग सरंचना में ओबीसी और दलितों को कैसे प्रवेश करने देगा . यही कारण है कि द्विज आधुनिकता के नए युवा ब्रिगेड जो खुद को समानता का झंडावरदार बताती है यूथ फॉर इक्वलिटी सड़कों पर झाड़ू लगा , जूता पोलिस कर उंच -नीच का प्रदर्शन करने लगती है . दरअसल ये जताना चाहते हैं कि रिसर्वद क्लास सिर्फ वे ही हैं . आर्थिक संसाधन ,आधुनिकता और प्रौधिगिकी पर सिर्फ उनका ही विशेषाधिकार है . कहना न होगा कि आईआईम और आईआईटी की शिक्षा में छिपी साम्राज्यवादी मनोवृति , ऊँची फ़ीस और जीवनशैली ने इन युवाओं को अवसरवाद के आत्मकेंद्रित युग में धकेल दिया है . नब्बे के दशक में मंडल विरोध के ठीक उलट अब ओबीसी आरक्षण के खिलाफ जो नया मध्य वर्ग लामबंद है वो भूमंडलीकरण की पैदाइश है , जो अभी तुरंत -फुरत अभिजन बने हैं . भले ही यह विरोधाभासी लगे , लेकिन शिक्षित ग्लोबल मध्य वर्ग का प्रौधिगिकीय आभिजात्य और आधुनिक द्विज का सांप्रदायिक आभिजात्य दोनों मिलकर सत्ता और प्राधिकार के प्रभुत्ववादी ढांचे के निर्माण में जुट गए हैं . इसमें सबसे ज्यादा नुकसान दलित , कामगार , जनजातियों और आदिवासियों का ही हो रहा है . मेरिट कोई ईश्वरीय वरदान या सन्देश नहीं है . मेरिट अर्जित की हुई संपत्ति है . सवर्णों को मेरिट फेक्टरी आईआईएम् और आई आई टी में तो आरक्षण नैतिक रूप से उपलब्ध है . मगर दलितों के पास इतनी आर्थिक संसाधन कहाँ जो ये प्रोडक्ट खरीद सके . हाँ जब कानून बना कर उन्हें इस प्रोडक्ट को खरीदने लायक बनाने की कवायद की जा रही तो ,इसमें सवर्णों को डरने की जरुरत क्यों . नए ज़माने के द्विज भूलते जा रहें हैं की तकनीकी और प्रौधिगिकी ज्ञान हासिल करने का हक़ सिर्फ उनको ही नहीं , बल्कि दलितों और आदिवासियों का भी है . इसके जवाब में ये बड़ा ही हैरतंगेज तर्क देते हैं और चिल्ला कर कहते हैं की आरक्षण देकर मेरिट को मत मारो , दलितों , पिछड़ों को मुफ्त में प्राथमिक शिक्षा दो .यह कहते हुए वे शायद ये भूल रहें है की शिक्षा नीति बनाने का जिम्मा भी उन्ही के पास था . दरअसल प्राथमिक शिक्षा कभी सवर्णों की समस्या थी ही नहीं . उनकी जरुरत उच्चतर शिक्षा थी , तकनीकी और प्रौधिगिकी कौशल हाशिल करनी थी . इसलिए सवर्णों के सुविधा के लिहाज से ही आई आई एम् और आई आई टी जैसे सरकारी संस्थाओं की नीव डाली गयी और उच्चतरशिक्षा में ज्यादा निवेश किया गया .

1 टिप्पणी:

  1. मैं मानता हूँ की इन्सान एक मशीन की तरह कम करता है | अगर किसी को ५ साल तक लगातार MBBS का कोर्से कराओ तो वाह डॉक्टर बनकर लोगों को देखेगा , ४ साल का अभियंत्रण पाठ्यक्रम के बाद वह इंजिनियर बनकर जिंदगी भर वही रटा- रटाया काम करेगा , बैंक क्लर्क हो या कोई कलाकार ..........सब अपनी फिल्ड में रटा- रटाया और पढ़ा- पढ़ाया सीखकर ही काम करते हैं . इसलिये मैं मानता हूँ की अगर ट्रेनिंग ( Course ) करके ही कुछ बना जा सकता है तो फिर आरक्षण के बारे में ये तर्क देना की ' कम merit वाले लोग अगर आरक्षण के कारण कुछ बन जायेंगे तो ये इस सेक्टर का नुकसान होगा उस सेक्टर का growth प्रभवित होगा बिलकुल गलत है , तर्कहीन है . मैं आपके इस तर्क से सहमत हूँ की ' दरअसल प्राथमिक शिक्षा कभी सवर्णों की समस्या थी ही नहीं' | बहुत खूब कहा है आपने सतीश |

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